जसवंत सिंह के वापसी के मायने?


शाहनवाज आलम


पूर्व विदेश मंत्री और वरिष्ठ राजनेता जसवंत सिंह की जिस शर्मनाक तरीके से भाजपा से निष्कासित किया गया था, दस माह बाद उसी शानदार तरीके से बिन शर्त पार्टी में उनकी वापसी हुई। पार्टी में अपनी वापसी के अवसर पर जसवंत सिंह आभार के साथ यह भी जता रहे थे कि किस तरह लालकृष्ण आडवाणी से लेकर नितिन गडकरी तक उनकी वापसी के लिए आतुर है । भाजपा की ओर से किसी भी नेता ने यह स्पष्टीकरण नहीं दिया कि वे कौन से कारण थे जिनके चलते जसवंत सिंह को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखाया गया था और किन कारणों से उन्हें पार्टी में फिर शामिल किया गया। जसंवत सिंह पूर्व प्रधानमंत्री अटल विहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी के नजदीकी है। ऐसा माना जा रहा है कि जसवंत सिंह की वापसी लालकृष्ण आडवाणी के पहल पर हुई है। नितिन गडकरी ने अपने वक्तव्य में कहा कि जसंवत सिंह की पार्टी में वापसी से भाजपा को विदेश, सुरक्षा और आर्थिक मामलों में लाभ मिलेगा। निःसंदेह जसंवत सिंह विद्वान और इन मामलों के जानकार है। मगर केवल इस आधार पर पार्टी में वापसी हुई है। यह बात कुछ हजम होने वाली नहीं है। साथ ही यह भी सवाल उठता है कि इतने बड़े पार्टी में कोई और जानकार नहीं है या उसके पास जसवंत सिंह के अलावा और कोई विकल्प नहीं था। भाजपा एक तरह से प्रायश्चित कर रही है। इसीलिए बिना शर्त पार्टी में वापसी हुई। दरअसल उन्हंे पार्टी से सिर्फ इसलिए निष्कासित किया गया था क्योंकि उन्होने अपनी किताब में देश विभाजन के लिए जवाहर लाल नेहरू और सरदार पटेल की भूमिका पर सवाल उठाए थे। बिना किसी विश्लेषण और जसवंत सिंह के सफाई के बगैर उन्हें बाहर का रास्ता दिखा दिया गया था। भाजपा को एतराज इस बात पर थी उन्होंने कैसे सरदार पटेल को विभाजन का दोषी ठहराया ? जबकि भाजपा के अनुसार विभाजन का मुखिया जिन्ना है। गौरतलब है कि अपनी पाकिस्तान यात्रा के दौरान करांची में जिन्ना को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए जिन्ना को सेक्यूलर बताने के बाद लालकृष्ण आडवाणी को पार्टी के अध्यक्ष पद से हटना पड़ा था। जब भी पड़ोसी देश पाकिस्तान के संस्थापक जिन्ना का नाम सामने आता है भाजपा उसी विरोध भाव को दर्शाती है। जिस समय जसवंत सिंह को निष्कासित किया गया था उस समय भाजपा लोकसभा चुनाव में हार की वजह तलाश रही थी। इसके लिए शिमला में चिंतन बैठक का आयोजन किया गया, मगर हार के कारणों से ज्यादा जसवंत सिंह पर केन्द्रित रही थी । जसवंत सिंह के शिमला पहुंचने से पहलेे ही मीडिया के सामने भाजपा नेतृत्व ने उन्हें निष्कासन का फैसला सुना दिया। मगर जसवंत सिंह पार्टी के सामने झुकने के बजाय पार्टी से लोहा लेना समझा और अपने पुस्तक में व्यक्त विचारों पर अडिग रहे। साथ ही साथ उन्होंने अपने पुस्तक के प्रचार और विमोचन के लिए पाकिस्तान भी गये। वहां भी उन्होंने कायदे-आजम जिन्ना की तारीफ में कोई कसर नहीं छोड़ी। निष्कासन के बाद केवल उन्होंने लोक-लेखा समिति के अध्यक्ष पद से इस्तीफा दिया था। अब अचानक दस माह बाद भाजपा सब कुछ भूल कर उन्हें पार्टी में फिर से वापस ले लिया। मगर इस वापसी के साथ ही कई सवाल पैदा हो रहे है जिसका जवाब पार्टी कार्यकर्ताओं के साथ-साथ भाजपा समर्थक भी जानना चाहेंगे। पार्टी में जसवंत सिंह की वापसी किस आधार पर हुई ? जसवंत सिंह के वापसी का मतलब यह समझा जाएं कि पार्टी भारत विभाजन के लिए जिन्ना से अधिक जवाहर लाल नेहरू और सरदार पटेल को दोषी मानती है ? यदि जसवंत सिंह का निष्कासन भाजपा की भूल थी, तो इसे सार्वजनिक रूप से स्वीकार क्यों नहीं कर रही है ? इस मामले में जसवंत सिंह भी चुप क्यों हैै ? क्या पार्टी फिर से बुजुर्ग राग अलाप रही है ? क्या जसवंत सिंह की वापसी भाजपा में वैचारिक बदलाव के संकेत है ? क्या जसवंत सिंह को अलग पार्टी बनाने का खतरा महसूस हो रहा था ?

5 comments

राजनैतिक दल अब केवल सत्ता पाना चाहते है और इसके लिए कोई भी समझौता कर सकते है. बधाई हो.
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तलाश जिन्दा लोगों की ! मर्जी आपकी, आग्रह हमारा!!
काले अंग्रेजों के विरुद्ध जारी संघर्ष को आगे बढाने के लिये, यह टिप्पणी प्रदर्शित होती रहे, आपका इतना सहयोग मिल सके तो भी कम नहीं होगा।
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सागर की तलाश में हम सिर्फ बूंद मात्र हैं, लेकिन सागर बूंद को नकार नहीं सकता। बूंद के बिना सागर को कोई फर्क नहीं पडता हो, लेकिन बूंद का सागर के बिना कोई अस्तित्व नहीं है। सागर में मिलन की दुरूह राह में आप सहित प्रत्येक संवेदनशील व्यक्ति का सहयोग जरूरी है। यदि यह टिप्पणी प्रदर्शित होगी तो विचार की यात्रा में आप भी सारथी बन जायेंगे।

ऐसे जिन्दा लोगों की तलाश हैं, जिनके दिल में भगत सिंह जैसा जज्बा तो हो। गौरे अंग्रेजों के खिलाफ भगत सिंह, सुभाष चन्द्र बोस, असफाकउल्लाह खाँ, चन्द्र शेखर आजाद जैसे असंख्य आजादी के दीवानों की भांति अलख जगाने वाले समर्पित और जिन्दादिल लोगों की आज के काले अंग्रेजों के आतंक के खिलाफ बुद्धिमतापूर्ण तरीके से लडने हेतु तलाश है।

इस देश में कानून का संरक्षण प्राप्त गुण्डों का राज कायम हो चुका है। सरकार द्वारा देश का विकास एवं उत्थान करने व जवाबदेह प्रशासनिक ढांचा खडा करने के लिये, हमसे हजारों तरीकों से टेक्स वूसला जाता है, लेकिन राजनेताओं के साथ-साथ अफसरशाही ने इस देश को खोखला और लोकतन्त्र को पंगु बना दिया गया है।

अफसर, जिन्हें संविधान में लोक सेवक (जनता के नौकर) कहा गया है, हकीकत में जनता के स्वामी बन बैठे हैं। सरकारी धन को डकारना और जनता पर अत्याचार करना इन्होंने कानूनी अधिकार समझ लिया है। कुछ स्वार्थी लोग इनका साथ देकर देश की अस्सी प्रतिशत जनता का कदम-कदम पर शोषण एवं तिरस्कार कर रहे हैं।

आज देश में भूख, चोरी, डकैती, मिलावट, जासूसी, नक्सलवाद, कालाबाजारी, मंहगाई आदि जो कुछ भी गैर-कानूनी ताण्डव हो रहा है, उसका सबसे बडा कारण है, भ्रष्ट एवं बेलगाम अफसरशाही द्वारा सत्ता का मनमाना दुरुपयोग करके भी कानून के शिकंजे बच निकलना।

शहीद-ए-आजम भगत सिंह के आदर्शों को सामने रखकर 1993 में स्थापित-भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान (बास)-के 17 राज्यों में सेवारत 4300 से अधिक रजिस्टर्ड आजीवन सदस्यों की ओर से दूसरा सवाल-

सरकारी कुर्सी पर बैठकर, भेदभाव, मनमानी, भ्रष्टाचार, अत्याचार, शोषण और गैर-कानूनी काम करने वाले लोक सेवकों को भारतीय दण्ड विधानों के तहत कठोर सजा नहीं मिलने के कारण आम व्यक्ति की प्रगति में रुकावट एवं देश की एकता, शान्ति, सम्प्रभुता और धर्म-निरपेक्षता को लगातार खतरा पैदा हो रहा है! अब हम स्वयं से पूछें कि-हम हमारे इन नौकरों (लोक सेवकों) को यों हीं कब तक सहते रहेंगे?

जो भी व्यक्ति इस जनान्दोलन से जुडना चाहें, उसका स्वागत है और निःशुल्क सदस्यता फार्म प्राप्ति हेतु लिखें :-

(सीधे नहीं जुड़ सकने वाले मित्रजन भ्रष्टाचार एवं अत्याचार से बचाव तथा निवारण हेतु उपयोगी कानूनी जानकारी/सुझाव भेज कर सहयोग कर सकते हैं)

डॉ. पुरुषोत्तम मीणा
राष्ट्रीय अध्यक्ष
भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान (बास)
राष्ट्रीय अध्यक्ष का कार्यालय
7, तँवर कॉलोनी, खातीपुरा रोड, जयपुर-302006 (राजस्थान)
फोन : 0141-2222225 (सायं : 7 से 8) मो. 098285-02666
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