सुनिए, एफडीआई के फायदे !


शाहनवाज आलम


विपक्ष राजनीतिक पार्टियों की एकजुट भारत बंद, ममता बनर्जी का समर्थन वापस लेने की भभकी के बावजूद केंद्र सरकार ने खुदरा बाजार में 51 फीसदी प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) के लिए अधिसूचना जारी कर दी है। यानी मनमोहन सरकार देश में चौतरफा हंगामें के बावजूद खुदरा बाजार में विदेशी पूंजी निवेश चाहती है।

अर्थशास्त्री प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह सरकार पैरालाइसिस पॉलिसी को उबारने के लिए किसी भी कीमत पर निवेश चाहती है। यानी विदेशी मुद्रा से देशी विकास। सरकार का तर्क है कि इससे देश में रोजगार पैदा होगा। किसानों को लाभ मिलेगा। सरकार जितने भी सब्ज बाग दिखाए, लेकिन विचार, अर्थशास्त्री, प्रोफेसर, लेखक तक यही मानते हैं कि इससे देश के आम आदमी को नुकसान होगा। बेरोजगारी और महंगाई में इजाफा होगा। चीजों के दाम तेजी से बढ़ेंगे और घरेलू उद्योगों को नुकसान होगा। यहां तक कि युवा भी सोशल साइट्स के जरिए युवा एफडीआई के खिलाफ कमेंट व पोस्ट कर रहे हैं।

 सरकार भले ही सुनहरे सपने दिखा रही हो, लेकिन कई सवालों का जवाब अब भी सरकार नहीं दे पा रही है। माना कि आज खुदरा बाजार में 1 किलो मटर 50 रुपये किलो में मिल रही है और उस मटर का मूल्य उसके उत्पादक किसान को 10 रुपये मिल रहा है। क्या वालमार्ट जैसी विदेशी खुदरा रिटेलर किसानों से सीधे खरीद कर 40 रुपये में बेचेगा? इस बात की क्या गारंटी है कि किसान को वालमार्ट 20 रुपये भी देगा! क्या इस पर सरकार समर्थन मूल्य निर्धारित कर पायेगी?
मौजूदा समय में कमोबेश करीब पांच करोड़ लोग खुदरा रिटेल से प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से जुड़े हैं। अगर देश में वालमार्ट जैसी पांच बड़ी कंपनियां भारत में एफडीआई के जरिए दुकानें खोलती हैं तो मंडियां समाप्त होने की प्रबल संभावना है। क्योंकि वालमार्ट जैसी कंपनियां सीधे किसान से माल खरीदेंगी और कुछ समय बाद एक मात्र थोक खरीदार बन कर इसकी मूल्य निर्धारक बन जाएंगी और किसान को अभी जो 10 रुपये मिल रहा है उसे मजबूरी में 8 रुपये में बेचना पड़ सकता है! क्योंकि मनमोहन सरकार जिसने पेट्रोलियम को नियंत्रण मुक्त कर दिया है वो दैनिक उपभोग की वस्तुओं पर मूल्य नियंत्रण करेगी! रही बात किसानों के फायदे कि तो आज भी लेस कंपनी सैफ अली खान का डांस करवाकर 20 रुपये किलो वाले आलू का चिप्स 800 रुपये किलो बेच रही है। 

माना कि ग्राहकों को प्रत्यक्ष रूप से 10 रुपये का फायदा होगा। लेकिन मौजूदा समय में जिस तरह गली-गली में रिटेल दुकानें चल रही हैं। क्या वालमार्ट जैसी कंपनियां गली में अपना रिटेल सेंटर खोलेंगी। निश्चित ही नहीं। सीधे किसानों से खरीदने के कारण मंडियां भी धीरे-धीरे दम तोड़ देंगी। खुदरा बाजार बंद हो जाएगा। इसके बाद अभी जो खुले बाजार में मटर 50 रुपये किलो बिक रहा है उसे शुरुआत में वालमार्ट हो सकता है 30 रुपये में बेचे लेकिन इसकी पूरी सम्भावना है कि छोटे गलियों में दुकान बंद होने के बाद यही उसे 80 रुपये में भी बेच सकता है।

यह सिर्फ तर्कहीन बातें नहीं है, बल्कि कुछ साल पहले छत्तीसगढ़ में पहले छोटी-छोटी काफी सीमेंट उत्पादक कारखाने थे। फिर एक बड़ी मल्टीनेशनल कंपनी का पदार्पण हुआ जो अपने उत्पादन मूल्य से भी कम अथवा बराबर मूल्य में सीमेंट बेचना चालू की जो इन स्थानीय उत्पादकों के मूल्य से भी काफी कम थी। शुरुआत में कंपनी अपना पैर जमाने के लिए प्रमोशनल के तौर पर घाटा उठाया, लेकिन जब स्थानीय उत्पादक उस मूल्य से प्रतिस्पर्धा नहीं कर सके और साल भर के अंदर ही आर्थिक बदहाली का शिकार होकर कारखाने बंद हो गये। जैसे ही सीमेंट की स्थानीय फैक्ट्रियां बंद हुई वैसे ही उस मल्टीनेशनल कंपनी ने अपने दाम तीन महीनों के भीतर ही दुगुने कर दिया और साम्राज्य पर एकाधिकार कर पुराने घाटों की भरपाई कर आज तक मलाई चाट रही है। 

बहरहाल, खुदरा निवेश के जरिए अरबो रुपये जो मल्टीनेशनल कंपनी खुदरा रिटेल में निवेश कर कमायेगा। उसे डॉलर में बदलकर भारत से बाहर ले जायेगा जिससे मुद्रा का अवमूल्यन नहीं होगा? क्या इससे हमारी कमाई का एक बड़ा हिस्सा जो आज देश के अंदर ही घूम रहा है उसके देश के बाहर जाने पर एक असंतुलन की स्थिति उत्पनन नहीं होगी। लेकिन अर्थशास्त्री प्रधानमंत्री होने के बावजूद यह बात समझ से परे है कि क्या एफडीआई कुछ क्षण कि लिए रोजगार देंगी, लेकिन लंबे समय पर इन्हीं युवाओं के हाथों में कुछ नहीं होगा। अब तो सोनिया जी और मनमोहन जी ही बता सकते हैं कि एफडीआई से किसका भला होगा, जनता का, नेता का या सोनिया जी का। वैसे भी राहुल तो अब कांग्रेस ने अंतर्राष्ट्रीय नेता बन गए हैं।